सिर्फ़ तुम लेखनी कविता -07-Jun -2023
आज दिनांक ७.६.२४ को प्रदत्त विषय,'सिर्फ़ तुम ' पर प्रतियोगिता वास्ते मेरी प्रस्तुति
सिर्फ़ तुम:-
----------------------------------------------------------------
मैंने तुमको ही चाहा है,कोई और नहीं मेरे ख़्वाबों मे।
शपथ लें लो चाहे मुझसे ,चाहत नहीं कोई दिल मे।।
रिश्ता तो मेरा तुमसे सुन लो बड़ा पुराना है।
परिचय भी नहीं था तुमसे तबसे ये दिल तेरा दीवाना है।।
मंच पर आकर तुम अक्सर ग़ज़लें गाया करते थे।
बहुत दर्द होता उन मे,मेरे आॅंसू बहते रहते थे।
चाहत तब से ही शुरू हुयी,तुम्हे लगाऊॅं कंठ ये दिल चाहा।
क्या दर्द भरा है सीने मे,उसका कुछ निवारण चाहा।।
सुना था तुम ने शहर बदल, कहीं और जा पढ़ना चाहा।
मैं रात -रात भर रोती थी ,किसी को बता न सकती थी।।
कल अरसे बाद देखा तुमको,वह दर्द फ़िर आज उभर आया।
सोचती हूॅं आज ही जाकर तुमसे प्रणय निवेदन कर दूं,
लेकिन हया रास्ते मे आती, मुझको न ये करने देती।।
डर है मम्मी -पापा मेरी वर्षान्त मे शादी कर देंगे,
एक टीस लिए दिल मे अपने ,ये दर्द छिपा ले जाऊंगी।
आनन्द कुमार मित्तल, अलीगढ़